Saturday, May 15, 2021

सुखदेव जी


🙏🏻 महान क्रांतिकारी सुखदेव जी 🙏🏻

💐💐जयंती : 15 मई,1907 💐💐

              सुखदेव को भारत के उन प्रसिद्ध क्रांतिकारियों और शहीदों में गिना जाता है जिन्हे न सिर्फ अपनी देशभक्ति, साहस और मातृभूमि पर कुर्बान होने के लिए जाना जाता है, बल्कि शहीद-ए-आजम भगत सिंह के अनन्य मित्र के रूप में भी उनका नाम इतिहास में दर्ज है| उन्हें भगत सिंह और राजगुरु के साथ 23 मार्च 1931 को फाँसी पर लटका दिया गया था। इनकी शहादत को आज भी सम्पूर्ण भारत में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

              ब्रितानिया हुकूमत को अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों से दहला देने वाले शहीद सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को पंजाब के लुधियाना शहर में हुआ था। सुखदेव का पूरा नाम ‘सुखदेव थापर’ था। उनके माता का नाम राल्ली देवी और पिता का नाम रामलाल थापर था। अपने बचपन से ही उन्होंने भारत में ब्रितानिया हुकूमत के जुल्मों को देखा और इसी के चलते वह गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए क्रांतिकारी बन गए।

               सुखदेव, शहीद भगत सिंह के साथ ‘लाहौर नेशनल कॉलेज’ के छात्र थे। दोनों एक ही राह के पथिक थे, अत: शीघ्र ही दोनों का परिचय गहरी दोस्ती में बदल गया। दोनों ही अत्यधिक कुशाग्र और देश की तत्कालीन समस्याओं पर विचार करने वाले थे। 1926 में लाहौर में ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन हुआ जिसके मुख्य संयोजक सुखदेव थे। इस टीम मे भगत सिंह, यशपाल, भगवतीचरण और जयचंद्र विद्यालंकार जैसे क्रांतिकारी भी थे।

               असहयोग आन्दोलन की विफलता के पश्चात नौजवान भारत सभा का मकसद स्वदेशी वस्तुओं, देश की एकता, सादा जीवन, शारीरिक व्यायाम और भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता पर विचार आदि करना था। लेकिन सुखदेव की जिंदगी मे बड़ा मोड़ तब आया जब सितम्बर 1928 में ही दिल्ली के फ़िरोजशाह कोटला के खण्डहर में उत्तर भारत के प्रमुख क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक हुई। इसमें एक केंद्रीय समिति का निर्माण हुआ। संगठन का नाम ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ रखा गया। सुखदेव को पंजाब के संगठन का उत्तरदायित्व दिया गया। भगत सिंह दल के राजनीतिक नेता थे और सुखदेव संगठनकर्ता। एच. आर. एस. ए. ने अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ अलख जगाना शुरू किया।

               सुखदेव न सिर्फ लाहौर के नेशनल कॉलेज में युवाओं में देशभक्ति का जज्बा भरने का काम किया, बल्कि खुद भी क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लिया। उनका नाम 1928 की उस घटना के लिए प्रमुखता से जाना जाता है जब क्रांतिकारियों ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए गोरी हुकूमत के कारिन्दे सहायक पुलिस अधीक्षक सांण्डर्स को मौत के घाट उतार दिया था। इस घटना ने ब्रिटिश साम्राज्य को हिलाकर रख दिया था और पूरे देश में क्रांतिकारियों की जय-जय कार हुई थी। सांण्डर्स की हत्या के मामले को ‘लाहौर षड्यंत्र’ के रूप में जाना गया।

                1929 में सेंट्रल एसेंबली में बम फेंकने के लिए पहले भगत सिंह का नाम नहीं दिया गया था क्योंकि पुलिस को पहले से ही उनकी तलाश थी। क्रांतिकारी नहीं चाहते थे कि भगत सिंह पकड़े जाएं। लेकिन सुखदेव भगत सिंह के नाम पर अड़ गए। उनका कहना था कि भगत सिंह लोगों में जागृति पैदा कर सकते हैं। सुखदेव का तर्क सुनने के बाद भगत सिंह को उनकी बात सही लगी। कई लोगों ने सुखदेव को कठोर दिल भी कहा कि उन्होंने अपने दोस्त भगत सिंह को मौत के मुंह में भेज दिया।

               जब दिल्ली में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय असेम्बली में बम फेंककर धमाका किया गया तो चारों ओर से गिरफ्तारी का दौर शुरू हुआ। लाहौर में एक बम बनाने की फैक्ट्री पकड़ी गई, जिसमें सुखदेव भी अन्य क्रांतिकारियों के साथ पकड़े गए। जेल से सुखदेव ने गांधी-इर्विन समझौते के सन्दर्भ में एक खुला खत गांधी जी के नाम अंग्रेजी में लिखा था जिसमें उन्होंने गांधी जी से कुछ गम्भीर प्रश्न किये थे।

              सुखदेव का लिखा पत्र ऐतिहासिक दस्तावेज है, जो न केवल देश की तत्कालीन स्थिति का विवेचन करता है, बल्कि कांग्रेस की मानसिकता को भी दर्शाता है। उस समय गांधी जी अहिंसा की दुहाई देकर क्रांतिकारी गतिविधियों की निंदा करते थे। इस पर कटाक्ष करते हुए सुखदेव ने लिखा, “मात्र भावुकता के आधार पर की गई अपीलों का क्रांतिकारी संघर्षों में कोई अधिक महत्व नहीं होता और न ही हो सकता है|”

             उसका उत्तर यह मिला कि लाहौर षड़यंत्र मामले के एकतरफ़ा अदालती कार्रवाई में उन्हें दोषी करार देते हुए निर्धारित तिथि और समय से पूर्व जेल मैनुअल के नियमों को दरकिनार रखते हुए 23 मार्च 1931 को सायंकाल 7 बजे सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह तीनों को लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी पर लटका कर मार डाला गया। इन तीनों क्रांतिकारी तो हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए लेकिन देश के युवाओं के मन में आजादी पाने की नई ललक पैदा कर गए। शहादत के समय सुखदेव की उम्र मात्र 24 साल थी।

               महान क्रांतिकारी सुखदेव जी की जयंती पर जन हितकारी संगठन उन्हें कोटि कोटि नमन करता है 💐💐🙏🏻🙏🏻

जय भारत🇮🇳

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