जतिंद्रनाथ मुखर्जी प्यार से 'बाघा जतिन' के रूप में याद किये जाते है। भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ मुख्य बंगाली क्रांतिकारियों में से थे। एक बहुत छोटी उम्र से, बाघा जतिन ने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और युगांतर राजनीतिक दल के मुख्य नेता थे। युगान्तर पार्टी बंगाल में क्रान्तिकारियों का प्रमुख संगठन थी। चार्ल्स ऑगस्टस तेगार्ट, भारत में एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी ने मशहूर टिप्पणी की है कि “बंगाली क्रांतिकारी निस्वार्थ राजनैतिक कार्यकर्ताओं की एक नस्ल के हैं और बाघा जतिन एक शानदार उदाहरण थे।”
जतिंद्रनाथ मुखर्जी का जन्म नदिया (जैसोर) जिले के कुश्तिया उपखंड के कायाग्राम में 7 दिसम्बर 1879 में हुआ था। पांच वर्ष कि अल्पायु में उनके पिता का देहांत हो गया। माँ ने बड़ी कठिनाई से उनका लालन-पालन किया। वह बचपन से ही बड़े बलिष्ठ थे। सत्यकथा है कि एक बार जंगल से गुजरते हुए उनकी मुठभेड़ एक बाघ (रॉयल बेन्गाल टाईगर) से हो गयी। उन्होंने बाघ को अपने हसिये से मार गिराया था। इस घटना के बाद जतिन्द्रनाथ “बाघा जतीन” के नाम से विख्यात हो गए थे।
18 वर्ष की आयु में उन्होंने मैट्रिक पास कर ली। अपने कॉलेज के वर्षों के दौरान जतिन्द्रनाथ स्वामी विवेकानंद के संपर्क में आये जिनके सामाजिक और राजनीतिक विचारों को बाद में जतीन ने प्रेरणा के रूप में क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन करने के लिए उपयोग किया। बाघा जतीन की धर्मार्थ की भावना ने उन्हें प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़ और महामारी की पीड़ा के लिए राहत गतिविधियों को शुरू करने के लिए मदद की। ब्रिटिश भारत के औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली से नाखुश, जतिन्द्रनाथ ने 1899 में अपनी पढ़ाई छोड़ दी।
जतिन्द्रनाथ 1900 में अनुशीलन समिति के संस्थापकों में से एक थे। अनुशीलन समिति ने ब्रिटिश सरकार के समर्थकों और अधिकारियों को मारने की दिशा में काम किया। अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखने के लिए उन्होंने अपने कई क्रान्तिकारियों के साथ मिलकर देवघर और कलकत्ता के मानिकतला क्षेत्र में बम कारखानों की स्थापना की। वर्ष 1907 में बाघा जतीन दार्जिलिंग में तीन वर्ष की अवधि के लिए एक विशेष मिशन पर गए। उन्होंने दार्जिलिंग में अनुशीलन समिति की एक शाखा खोली और नाम दिया बंधब समिति।
बाघा जतीन ने बंगाल, बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में क्रांतिकारियों की विभिन्न शाखाओं के बीच मजबूत संपर्क स्थापित किया। यह वह समय था जब वरिष्ठ नेताओं के सलाखों के पीछे जाने के बाद बाघा जतीन अंग्रेजों के खिलाफ बंगाल क्रांति के नए नेता के रूप में उभरे। वह बंगाल में उग्रवादी क्रांतिकारी नीति शुरू करने के लिए उत्तरदायी थे। बाघा जतीन को 27 जनवरी 1910 को गिरफ्तार किया गया था हालांकि वह कुछ दिनों के बाद छोड़ दिए गए थे।
जेल से अपनी रिहाई के बाद, वह 'अनुशीलन समिति' के सक्रिय सदस्य बन गए और 'युगान्तर' का कार्य संभालने लगे। उन्होंने अपने एक लेख में उन्हीं दिनों लिखा था कि “पूंजीवाद समाप्त कर श्रेणीहीन समाज की स्थापना क्रान्तिकारियों का लक्ष्य है। देशी-विदेशी शोषण से मुक्त कराना और आत्मनिर्णय द्वारा जीवन यापन का अवसर देना हमारी मांग है।” बाघा जतीन ने अपने राजनीतिक विचारों से एक नए युग की शुरूआत की। बाघा जतीन की राजनीति में वापसी इतनी प्रभावशाली रही कि क्रांतिकारी रास बिहारी बोस ने बनारस से कलकत्ता स्थानांतरित होकर बाघा जतीन के नेतृत्व में काम करना स्वीकार किया।
क्रांतिकारियों के पास आन्दोलन के लिए धन जुटाने का प्रमुख साधन सरकारी खजाने को लूटना था। इन लूटों में 'गार्डन रीच' की लूट बड़ी मशहूर मानी जाती है जिसके मुख्य नेता बाघा जतीन थे। 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद, जतिन्द्रनाथ की युगांतर पार्टी ने बर्लिन समिति और जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता पार्टी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जबकि भारतीयों की अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी योजनाओं को जर्मनी का समर्थन प्राप्त था, यह बाघा जतीन ही थे जिन्होंने इस पूरी प्रक्रिया में समन्वय और नेतृत्व प्रदान किया था।
हालांकि युगांतर और बाघा जतीन की गतिविधियों ने जल्द ही पुलिस अधिकारियों का ध्यान पकड़ा, जिससे बाघा जतीन अप्रैल 1915 में उड़ीसा में बालासोर जाने के लिए मजबूर हुए। जैसे ही जर्मनी के साथ बाघा जतीन की भागीदारी के बारे में ब्रिटिश अधिकारियों को पता चला, उन्होंने तत्काल कार्रवाई से गंगा के डेल्टा क्षेत्रों, उड़ीसा के चटगांव और नोआखली तटीय क्षेत्रों को सील कर दिया। बाघा जतीन के ठिकाने की खोज करने के लिए पुलिस खुफिया विभाग की एक इकाई को बालासोर भेजा था।
न केवल ब्रिटिश बल्कि ग्रामीण भी बाघा जतीन और उनके साथियों की खोज में थे क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने 'पांच डाकुओं' के बारे में जानकारी देने वाले को इनाम देने की घोषणा की थी। अंत में 9 सितम्बर 1915 को बाघा जतीन और उनके साथियों ने बालासोर में चाशाखंड क्षेत्र में एक पहाड़ी पर बारिश से बचने के लिए आश्रय लिया तभी पुलिस ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। हालांकि चित्ताप्रिय और उनके साथियों ने बाघा जतीन से आग्रह किया वे उन्हें छोड़ कर चले जाए लेकिन जतीन ने अपने दोस्तों को खतरे में अकेला छोड़कर जाने से इनकार कर दिया।
पांच क्रांतिकारियों जिनके पास माउजर, पिस्टल थी और आधुनिक राइफल से लैस पुलिस और सशस्त्र सेना के बीच 75 मिनट चली मुठभेड़ में अनगिनत लोग ब्रिटिश सरकार के घायल हो गए और क्रांतिकारियों में चित्ताप्रिय की मृत्यु हो गई। इसी बीच जतीन बाघा का शरीर गोलियों से छलनी हो चुका था। जब गोला बारूद ख़त्म हो गया तो बाघा जतीन और उनके साथी पकडे गए। गिरफ्तारी देते वक्त बाघा जतीन ने कहा- ‘गोली मैं और चित्तप्रिय ही चला रहे थे। बाकी के तीनों साथी बिल्कुल निर्दोष हैं।’
बाघा जतिन को बालासोर अस्पताल ले जाया गया। इसके अगले दिन 10 सितम्बर 1915 को भारत की आज़ादी के इस महान क्रांतिकारी ने अस्पताल में सदा के लिए आँखें मूँद लीं। मातृभूमि के लिए उनका शौर्य और बलिदान हमेशा याद रखा जाएगा। बाघा जतिन के अन्तिम शब्द थे कि -
सूख न जाए कहीं पौधा ये आज़ादी का, खून से अपने इसे इसलिए तर करते हैं।
दर-ओ-दीवार पर हसरत से नजर करते हैं,
खुश
रहो अहल-ए-वतनहम तो सफ़र करते हैं।।
महान क्रांतिकारी जतिंद्रनाथ मुखर्जी के बलिदान दिवस पर "जन हितकारी संगठन" उन्हें कोटि कोटि नमन करता है 💐💐🙏🏻🙏🏻
जय भारत🇮🇳
बाघ से लड़कर उसे मार गिराने वाले क्रांतिकारी योद्धा बाघा जतिन को मै शत शत नमन करता हूं💐💐
ReplyDeleteमहान क्रांतिकारी को कोटि कोटि नमन
ReplyDelete🇮🇳🇮🇳🇮🇳💐💐🇮🇳🇮🇳🇮🇳
Koti koti vandan
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