Sunday, May 23, 2021

कर्तार सिंह सराभा

 


महान क्रांतिकारी #कर्तार_सिंह_सराभा जी🙏🏻🙏🏻

#जयंती: 24 मई,1896💐💐

              कर्तार सिंह सराबा भारत के प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों में से एक थे। भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिये अमेरिका में बनी ‘गदर पार्टी’ के अध्यक्ष थे। जिनको अंग्रेजी सरकार ने मात्र 19 वर्ष की अवस्था में क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण 16 नवंबर, 1915 को लाहौर सेन्ट्रल जेल में फांसी दे दी थी। प्रसिद्ध क्रान्तिकारी भगत सिंह उन्हें अपना आदर्श मानते थे।

              क्रान्तिकारी कर्तार सिंह का जन्म 24 मई 1896 को पंजाब के लुधियाना ज़िले के 'सराबा' नामक गाँव में हुआ था। उनकी माता का नाम साहिब कौर और उनके पिता का नाम मंगल सिंह था। कर्तार सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लुधियाना के स्कूलों में हासिल की। सन 1905 के 'बंगाल विभाजन' के विरुद्ध क्रान्तिकारी आन्दोलन प्रारम्भ हो चुका था, जिससे प्रभावित होकर कर्तार सिंह क्रांतिकारियों में सम्मिलित हो गये। क्रान्तिकारी विचार की जड़ें उनके हृदय में गहराई तक पहुँच चुकी थीं। उनके परिवार ने उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए उन्हें अमेरिका में संफ्रंसिस्को स्थित बर्कले यूनीवर्सिटी में दाखिला दिला दिया।

              एक बुजुर्ग महिला के घर में किराएदार के रूप में रहते हुए, जब अमेरिका के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर महिला द्वारा घर को फूलों व वीर नायकों के चित्रों से सजाया गया तो कर्तार सिंह ने इसका कारण पूछा। महिला के यह बताने पर कि अमेरिका के स्वतंत्रता दिवस पर नागरिक ऐसे ही घर सजा कर खुशी का इज़हार करते हैं तो करतार सिंह के मन में भी यह भावना जागृत हुई कि हमारे देश की आज़ादी का दिन भी होना चाहिए। कर्तार सिंह के भीतर एक आज़ाद देश में रहते हुए अपनी राष्ट्रीय अस्मिता, आत्मसम्मान व आज़ाद की तरह जीने की इच्छा पैदा हुई।

            कर्तार सिंह सराबा साहस की प्रतिमूर्ति थे। देश की आज़ादी से सम्बन्धित किसी भी कार्य में वे हमेशा आगे रहते थे। अप्रैल, 1913 में अमेरीका में रहने वाले भारतीयों ने देश की आजादी के लिए ‘गदर पार्टी’ का गठन किया जिसका मुख्य उद्देश्य सशस्त्र संघर्ष द्वारा भारत को अंग्रेजी गुलामी से मुक्त करवाना और लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना करना था। कर्तार सिंह इस पार्टी के एक महत्वपूर्ण कार्यकर्ता बने तथा अमेरिका में घूम-घूम कर इसका प्रचार करने लगे। कर्तार सिंह के प्रयासों से गदर अखबार भी निकलना शुरू हुआ, जिसके लिए वह मशीन को स्वयं चलाया करते थे तथा देश की आजादी के लिए लेख लिखते थे। कर्तार सिंह को ही इस अखबार के लिए धन इक्कठा करने की जिम्मेवारी सौंपी गयी और इस जिम्मेवारी को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी यूनिवर्सिटी की पढ़ाई भी अधूरी छोड़ दी। कुछ ही दिनों के अंदर गदर पार्टी और समाचार पत्र दोनों ही लोकप्रिय हो गए। वहां उन्होंने भारतवर्ष की आजादी के चाहने वालों को एक सिरे में पिरो दिया था।

          कर्तार सिंह देश की आजादी के लिए बिगुल बजाने को आतुर थे, जिसके लिए उन्होंने सितम्बर, 1914 में अपने वतन भारत पहुंच गए। उन्होंने देश में क्रांति के लिए पक्का इरादा कर लिया था और इसके लिए गदर की गूंज लेखों द्वारा छिपे रूप में प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया और लाहौर से लेकर कलकत्ता तक छावनियों में भारतीय सैनिकों को विद्रोह के लिए तैयार कर लिया| 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के समय अंग्रेजी सेना युद्ध के कार्यों में अत्याधिक व्यस्त हो गई| इस अवसर का पूरा फायदा उठाते हुए ग़दर पार्टी के सदस्यों ने 5 अगस्त, 1914 को समाचार पत्र में अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध “डिसिजन ऑफ डेक्लेरेशन ऑफ वार” नामक लेख प्रकाशित किया|

           अंत में विद्रोह के लिए 21 फरवरी, 1915 का दिन निश्चित किया गया और इसकी जानकारी सभी भारतीय सैनिकों को छावनियों में दे दी गई तथा पूरी तरह से तैयारी कर ली गई थी। लेकिन अफसोस है कि पांच दिन पहले कृपाल नाम का उनका एक साथी जिसने इस पूरी योजना की सूचना चुपके-चुपके अंग्रेजी सरकार तक पहुंचा दी| जिस कारण अंग्रेजों ने सभी छावनियों में भारतीय सैनिकों से हथियार ले लिए और बहुतों को गिरफ्तार कर लिया गया। कर्तार सिंह को जब इस विश्वासघात का पता चला तो उन्हें बड़ा सदमा पहुंचा। पुलिस उनका पूरी तरह से पीछा कर रही थी और उन्हें लाहौर में गिरफ्तार कर लिया गया। कर्तार सिंह को हथकडिय़ों व बेडिय़ों से पूरी तरह बांध दिया गया और इसी अवस्था में उन्हें अंग्रेज जजों के सामने पेश किया।

           कर्तार सिंह पर हत्या, डाका, शासन को उलटने का अभियोग लगाकर 'लाहौर षड़यन्त्र' के नाम से मुकदमा चलाया गया। उनके साथ 63 दूसरे क्रांतिकारियों पर भी मुकदमा चलाया गया था। कर्तार सिंह ने अदालत में अपने अपराध को स्वीकार करते हुए ये शब्द कहे- "मैं भारत में क्रांति लाने का समर्थक हूँ और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अमेरिका से यहाँ आया हूँ। यदि मुझे मृत्युदंड दिया जायेगा, तो मैं अपने आपको सौभाग्यशाली समझूँगा क्योंकि पुनर्जन्म के सिद्धांत के अनुसार मेरा जन्म फिर से भारत में होगा और मैं मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए काम कर सकूँगा|”

           जज ने मुकदमे का निर्णय सुनाते हुए कहा था- "इस युवक ने अमेरिका से लेकर हिन्दुस्तान तक अंग्रेज़ शासन को उलटने का प्रयास किया। इसे जब और जहाँ भी अवसर मिला, अंग्रेज़ों को हानि पहुँचाने का प्रयत्न किया। इसकी अवस्था बहुत कम है, किन्तु अंग्रेज़ी शासन के लिए बड़ा भयानक है।" जज ने उन 63 क्रांतिकारियों में से 24 को फाँसी की सज़ा सुनाई। जब इसके विरुद्ध अपील की गई, तो सात व्यक्तियों की फाँसी की सज़ा पूर्ववत् रखी गई थी। उन सात व्यक्तियों के नाम थे- कर्तार सिंह सराबा, विष्णु पिंगले, काशीराम, जगत सिंह, हरिनाम सिंह, सज्जन सिंह एवं बख्शीश सिंह। फांसी पर झूलने से पूर्व कर्तार सिंह ने यह शब्द कहे- “हे भगवान मेरी यह प्रार्थना है कि मैं भारत में उस समय तक जन्म लेता रहूँ, जब तक कि मेरा देश स्वतंत्र न हो जाये|”

          यही कर्तार सिंह सराबा की शहीदी आने वाले समय में क्रांतिकारी भगत सिंह की मार्गदर्शक बनी। भगत सिंह ने कर्तार सिंह को अपने जीवन में आदर्श माना जिनका चित्र वे हमेशा अपनी जेब में रखते थे और ‘नौजवान भारत सभा’ नामक युवा संगठन के माध्यम से वे करतार सिंह सराबा के जीवन को स्लाइड शो द्वारा नवयुवकों में आज़ादी की प्रेरणा जगाने के लिए दिखाते थे। ‘नौजवान भारत सभा’ की हर जनसभा में कर्तार सिंह सराबा के चित्र को मंच पर रख कर उसे पुष्पांजलि दी जाती थी। एक तरह से भगत सिंह का व्यक्तित्व व चिंतन गदर पार्टी की परंपरा को अपनाते हुए उसके अग्रगामी विकास के रूप में निखरा। गदर पार्टी ने भारत के स्वाधीनता संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान किया।

            कर्तार सिंह सराबा का नाम हमेशा भारतीय इतिहास में ही नहीं, बल्कि दुनिया के इतिहास में अमर रहेगा। उन्होंने आजादी के लिए भारतीयों के दिल में जो ज्योति जलाई, वह तब तक जलती रही, जब तक कि देश आजाद नहीं हो गया। उनके शौर्य, साहस, त्याग एवं बलिदान की मार्मिक गाथा आज भी भारतीयों को प्रेरणा देती है और देती रहेगी।

            महान क्रांतिकारी #कर्तार_सिंह_सराभा जी की जयंती पर उन्हें कोटि कोटि नमन💐💐🙏🏻🙏🏻

जय भारत🇮🇳

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