राजेन्द्रनाथ लाहिड़ीबलिदान दिवस : 27 दिसंबर, 1927
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी
देश की स्वतन्त्रता के लिये हँसते-हँसते अपने प्राण न्योछावर करने वाले प्रतिभावान
क्रान्तिकारी, देशप्रेम, फौलादी इच्छाशक्ति और दृढ़ निश्चय के प्रतीक थे।
राजेन्द्रनाथ को ऐतिहासिक काकोरी काण्ड में
अंग्रेजो के विरुद्ध युद्ध छेड़ने, सरकार का तख्ता पलटने और रेलवे खजाना
लूटने के आरोप में 17 दिसंबर 1927 को गोण्डा जिला
कारागार में निर्धारित तिथि से दो दिन पूर्व फाँसी पर
लटकाकर मार दिया गया।
राजेंद्रनाथ लाहिड़ी का जन्म 23 जून 1901 को बंगाल में पबना जिला के मोहनपुर गांव में हुआ था। उनके
माता का नाम बसंत कुमारी और पिता का नाम क्षिति मोहन लाहिड़ी था| उनके जन्म के समय
पिता व बड़े भाई बंगाल में चल रही अनुशीलन दल की गुप्त
गतिविधियों में योगदान देने के आरोप में कारावास की सलाखों के पीछे कैद थे। दिल
में राष्ट्रप्रेम की चिन्गारी लेकर मात्र नौ वर्ष की आयु में ही वे बंगाल से अपने मामा के घर वाराणसी पहुँचे। वाराणसी
में ही उनकी शिक्षा दीक्षा सम्पन्न हुई।
राजेन्द्रनाथ काशी नगरी में पढाई
करने गये थे किन्तु संयोगवश वहाँ पहले से ही निवास कर रहे सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी सचिन्द्रनाथ
सान्याल के सम्पर्क में
आ गये। राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को देश-प्रेम और निर्भीकता की भावना विरासत में मिली
थी। राजेन्द्र की फौलादी दृढ़ता,
देशप्रेम और
आजादी के प्रति दीवानगी के गुणों को पहचान कर सचिन्द्रनाथ ने उन्हें अपने
साथ रखकर बनारस से निकलने वाली
पत्रिका बंग
वाणी के सम्पादन का दायित्व तो दिया ही, अनुशीलन
समिति की वाराणसी शाखा
के सशस्त्र विभाग का प्रभार भी सौंप दिया। उनकी कार्य कुशलता को देखते हुए उन्हें हिन्दुस्तान
रिपब्लिकन ऐसोसिएशन की गुप्त बैठकों
में आमन्त्रित भी किया जाने लगा|
पठन
पाठन की अत्यधिक रूचि तथा बाँग्ला
साहित्य के प्रति
स्वाभाविक प्रेम के कारण राजेन्द्रनाथ अपने भाइयों के साथ मिलकर अपनी माता की
स्मृति में बसंतकुमारी नाम का एक पारिवारिक पुस्तकालय स्थापित कर लिया था। काकोरी काण्ड में गिरफ्तारी के समय ये
काशी हिंदू विश्वविद्यालय की बाँग्ला साहित्य परिषद के मंत्री थे। इनके लेख
बाँग्ला के बंगवाणी और शंख आदि पत्रों में
छपा करते थे। राजेन्द्रनाथ ही बनारस के क्रांतिकारियों के हस्तलिखित पत्र अग्रदूत के प्रवर्तक थे। इनका लगातार यह प्रयास
रहता था कि क्रांतिकारी दल का प्रत्येक सदस्य अपने विचारों को लेख के रूप में
दर्ज़ करे|
भारतीय
स्वाधीनता संग्राम में काकोरी कांड का बड़ा महत्त्व है| यह पहला अवसर था जब स्वाधीनता सेनानियों ने सरकारी खजाना
लूटकर जनता में यह विचार फैलाने में सफलता पाई कि क्रान्तिकारी आम जनता के नहीं अपितु
शासन के विरोधी है| योजना के अनुसार 9 अगस्त 1925 को सायंकाल लखनऊ के पास काकोरी से छूटी आठ डाउन गाड़ी में
जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया गया| काकोरी काण्ड के बाद राजेन्द्रनाथ कलकत्ता चले
गये जहाँ दक्षिणेश्वर बम
काण्ड में भी उन्हें 5 वर्ष की सजा हुई थी।
जब काकोरी काण्ड का मुकदमा प्रारम्भ हुआ तो राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को बंगाल की
जेल से निकाल कर लखनऊ लाया
गया| पकड़े गये सभी क्रांतिवीरों पर शासन के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने एवं
खजाना लूटने का अभियोग लगाया गया| इस कांड में लखनऊ की विशेष अदालत ने 6 अप्रैल 1927 को निर्णय सुनाया जिसके अन्तर्गत लूट के
लिए मौत का कानून न होने के बावजूद अंग्रेजी हुकूमत ने राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह तथा अशफाक उल्ला खां को मृत्यु दंड दिया गया| फाँसी के फैसले
के बाद सभी को अलग कर दिया गया| राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को गोण्डा कारागार भेज दिया
गया|
राजेन्द्रनाथ
लाहिड़ी अध्ययन और व्यायाम में अपना सारा समय व्यतीत करते थे। इसलिए
उन्होंने जेल में भी अपनी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं किया। जेलर ने पूछा कि- “प्रार्थना
तो ठीक है, परन्तु अन्तिम
समय इतनी भारी कसरत क्यो?” राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने उत्तर दिया- “व्यायाम मेरा नित्य का नियम है। मृत्यु
के भय से मैं नियम क्यों छोड़ दूँ? दूसरा और महत्वपूर्ण कारण है कि हम पुर्नजन्म में विश्वास
रखते हैं। व्यायाम इसलिए किया कि दूसरे जन्म में भी बलिष्ठ शरीर मिलें, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ़ युद्ध
में काम आ सके|”
19 दिसम्बर को रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह तथा अशफाक उल्ला खां तीनों को फाँसी
दी गयी लेकिन भयवश अंग्रेजी शासन ने राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को अन्य क्रांतिकारियों से दो दिन पूर्व ही गोंडा कारागार
में 17 दिसम्बर 1927 को ही फाँसी दे दी|
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने हँसते-हँसते फांसी का
फंदा चूमने से पहले ‘वन्देमातरम' की जोरदार हुंकार भरकर जयघोष करते हुए
कहा- “मैं मर नहीं रहा हूँ,
बल्कि स्वतंत्र भारत में पुर्नजन्म लेने जा रहा हूँ|” क्रांतिकारी की
इस जुनून भरी हुंकार को सुनकर अंग्रेज़ ठिठक गये थे। उन्हें लग गया था कि इस धरती के सपूत उन्हें
अब चैन से नहीं जीने देंगे।